आखिर पाया तो क्या पाया ? हरिशंकर परसाई

जब तान छिड़ी, मैं बोल उठा
जब थाप पढ़ी, पग दोल उठा
औरो के स्वर में स्वर भर कर
अब तक गाय तो क्या गाया?

सब लुटा विश्व को रंक हुआ
रीता अब मेरा अंक हुआ
दाता से फिर याचक बनकर
कण-कण पाया तो क्या पाया?

जिस ओर उठी ऊँगली जग की
उस ओर मुढ़ी गति पग की
जग के आँचल से बंधा हुआ
खिचता आया तो क्या आया?

जो वर्तमान ने उगल दिया
उसको भविष्य ने निगल लिया
हैं ज्ञान सत्य ही श्रेष्ट किन्तु
झूठन खाया तो क्या खाया?